खंडहर की भूलभुलईया थी, लुका-छुपी की बाज़ी थी खंडहर की भूलभुलईया थी, लुका-छुपी की बाज़ी थी
दुनिया को तो जोड़ा पर अपनी ही जड़ों से तोड़ दिया। दुनिया को तो जोड़ा पर अपनी ही जड़ों से तोड़ दिया।
कभी चले आओ हमारे गाँव में दोनों बैठेंगे फिर पीपल की छाँव में। कभी चले आओ हमारे गाँव में दोनों बैठेंगे फिर पीपल की छाँव में।
ममता की छाँव को कभी भुलाना नहीं कभी एक माँ को रुलाना नहीं । ममता की छाँव को कभी भुलाना नहीं कभी एक माँ को रुलाना नहीं ।
निकला था एक गीत मन के द्वार से, कि खो जाऊँ आज बस इसी शाम में। निकला था एक गीत मन के द्वार से, कि खो जाऊँ आज बस इसी शाम में।
साँसों की कीमत जो समझ गया, उसने न रोना है न पछताना है। साँसों की कीमत जो समझ गया, उसने न रोना है न पछताना है।